
प्रिय भूतनाथ( राजीव) जी
मुझे याद है कि बहुत पहले हमारे घर में पोस्टल स्टैम्प्स, सफ़ेद लिफाफे और गोंद के दूकान सी लगी रहती थी. उनका प्रयोग मै दो चीजो में करता था, एक तो नौकरी का फॉर्म भरने में और दूसरा अपनी लिखी कविताओं को विभिन्न पत्र पत्रिकाओं तक पहुंचाने में. वो समय बीत चुका है अब . इन सब को अब ६ साल हो गए है. बहुत सारा पैसा सिर्फ इस बात पे बहा दिया कि मेरी कवितायेँ किसी magazine में छप सकें. कविताएं छपीं भी. मुझे याद है की मेरी सबसे पहली कविता अमरउजाला में छपी थी और मेरे कई दोस्तों ने उसे पढ़ कर नाईस, बेहद उम्दा, बेहतरीन प्रस्तुति, बढ़िया लिखा है, अच्छा लिखते हो आप जैसे कमेंट्स दिए थे. मुझे यह भी याद है ऐसी ही कई शानदार टिप्पड़ियों से प्रभावित होकर मैंने पोस्टल स्टैम्प्स और सफ़ेद लिफाफों की खरीददारी बढ़ा दी थी. अफ़सोस की बात तो यह है उस समय मै एक छात्र था. १० रुपये १५ दिन चलते थे मगर एक कविता भेजने में 22 रुपये खर्च हो जाते थे. ऐसे कई २२ रूपये रजिस्टर्ड पोस्ट पर खर्च करने के बाद में भी बहुत कम ही नाईस, बेहद उम्दा, बेहतरीन प्रस्तुति, बढ़िया लिखा है, अच्छा लिखते हो आप जैसे कमेंट्स सुनने को मिल पाते थे मुझे. दैनिक जागरण को तो पता नहीं मुझसे क्या समस्या थी. बेहद कूड़ा कूड़ा कविताये किसी कभी न सुने हुए बूढ़े और अझेल कवि के नाम पर उनके जीवन परिचय के साथ छप जाती थी और मै सोचता था की इन महोदय ने ऐसा क्या लिख दिया है जो हम नहीं लिख रहे है . उन सब बातों से ये तो भरोसा तो हो गया की बुढ़ापे तक मेरी कवितायेँ छपना तय है .
खैर अब वो सारी बाते पुरानी हो चुकी है. छपने छपाने का शौक ही नहीं बचा. न तो इतना समय है ना ही इतनी एनर्जी. अब तो जब तक किसी मेहनत के वाजिब दाम नहीं मिलते लिखने का भी मन नहीं करता. अब तो बस पोर्टफोलियो देखकर ही लोग वाह वाह और बढ़िया लिखा है जैसे कमेंट्स कर देते है. पचासों अखबार आपका लिखा कुछ भी छापने को तैयार हो जाते है ( बशर्ते की वो फ्री में हो). सैकड़ो ब्लॉग है ,सैकड़ों वेबसाइटें है जहाँ जो मन हो लिखो, पेल के लिखो ,ठेल के छापो, मेल करो , लिंक को ऑरकुट, फेसबुक और ट्विट्टर पर चिपका दो और लूट लो वाहवाही. मै तो जी अब ऐसा ही करता हूँ मेरे कई मित्र महोदय भी है, अच्छा ख़ासा रिस्पोंस भी मिल रहा है उनसे. सच कहूँ तो थोडा satisfaction तो मिल ही जाता है. बाकी प्रोफेसन तो है नहीं मेरा कविता लिखना . पेशे से पत्रकार हूँ, दिनभर दौड़ता रहता हूँ, जो कुछ देखा सुना उसकी रूपरेखा उतार देता हूँ स्क्रिप्ट में एंकर महोदय के माध्यम से सूचनाएं पहुँच जाती है आपतक. अब आप ही बताये की इस व्यस्त दिनचर्या में कहाँ मै पोस्टल स्टैम्प्स, सफ़ेद लिफाफे और गोंद खरीदने जाऊं. कभी कभार सोचा की ईमेल करू. मगर अफ़सोस कि वहां अभी भी तथाकथित सर बैठे है जिन्हें लगता है कि ईमेल सादगीपूर्ण जिन्दगी का हिस्सा नहीं. ऐसे में अगर ब्लॉग के जरिये कुछ नए लोगों की रचनाये देखने और पढने को मिल रही है तो उनमे क्या गलत है. रही बात कमेंट्स की तो ये लोगों का व्यक्तिगत मामला भी हो सकता है. मै तो आज भी बुरी रचनाओं की आलोचना करने से नहीं चूकता.
हमारा ब्लॉग उन सभी लोगों के लिए है तो लिखना चाहते है और बिना गोंद और सफ़ेद कागज़ पर खर्चा किये छपना चाहते है . यहाँ बहुत सारे सीनिअर्स हैं जो उनका मार्गदर्शन करते रहते है . हमारा ब्लॉग यहाँ आई हुई सभी पोस्ट्स को नहीं छापता. हम यह निर्णय मिल जुल कर लेते हैं कि केवल उन्ही पोस्ट्स को सम्मिलित किया जाए जो ब्लॉग के standards के अनुकूल हों.

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