साहित्य की तरह कार्टून भी समाज का दर्पण है

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  • Monday, May 14, 2012
  • वाह कितनी बहादुरी है सबसे बड़े लोकतन्त्र में जहां हर तरफ़ अभिव्यक्ति की पूरी स्वतन्त्रता है। कार्टून पसन्द नहीं, रोक लगा दो। वेबसाइट पसन्द नहीं। बन्द कर दो। कोई अप्रिय बात कहे- मुंह तोड़ दो! कभी अपने भीतर झांकने की हिम्मत दिखाई क्या! अरे विरोध करना है तो अपने उन साथियों का करो आपके बगल में बैठने लायक नहीं हैं। चुनाव के समय अनुपयुक्त और अयोग्य लोगों को टिकट देने का विरोध करो।




    TC Chandar
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    ‘कार्टून’ से डरना और उनको लेकर विवाद खड़े करना कोई नयी बात नहीं है। ऐसा कई बार हुआ है। ताज़ा मामला अम्बेडकर और नेहरू के कार्टून को लेकर सामने आया है। हाल ही में इस कार्टून पर सांसदों ने संसद में अपना क्रोध व्यक्त किया। पहले से ही विवादों में घिरे मानव संसाधन विकास मन्त्री कपिल सिब्बल का इस मामले में इस्तीफ़ा भी मांग लिया गया। कॉंग्रेसी सांसद पी.एल. पुनिया ने कहा कि वे अपने पद से त्याग पत्र दें या देश से माफ़ी मांगें। यह भी मांग उठी कि सभी सम्बधित अधिकारियों को उनके पद से हटा दिया जाए। सभी के एक सुर होने का लगभग एक ही अर्थ था। इसे भेड़चाल या भीड़चाल कहा जा सकता है।

    उल्लेखनीय है कि आज विवादास्पद बना दिया गया यह कार्टून २८ अगस्त, १९४९ को विश्व प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट शंकर पिल्लई (1902--1989) ने बनाया था। तब जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधान मन्त्री थे। उन्होंने शंकर से कह रखा था कि उन्हें मित्र होने के नाते भी कार्टून बनाने में बख्शा नहीं जाए। कार्टूनिस्ट शंकर उनके प्रिय मित्र थे। इस कार्टून पर न नेहरू ने और न ही किसी अन्य व्यक्ति ने बीते ६३ सालों में कभी कोई आपत्ति की। अब अचानक कुछ लोगों को यह लगा कि यह कार्टून दलित विरोधी है। यानी इस कार्टून से अम्बेडकर और दलितों का अपमान हो रहा है या लोगों की भावनाएं आहत हो रही हैं। ऐसे कार्टून को एनसीईआरटी की सम्बन्धित पुस्तक से अविलम्ब हटा दिया जाना चाहिए। कार्टून विवाद के चलते एनसीईआरटी की पुस्तक प्रकाशन वाली समिति के सलाहकार योगेन्द्र यादव और सुहास पल्सीकर ने विरोधस्वरूप समिति से त्याग पत्र दे दिया।

    किसी पुस्तक को एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में ऐसे ही शामिल नहीं कर लिया जाता है। अनेक जानकार और विद्वान लोग उसे ध्यान से देखते-पढ़ते हैं। इन लोगों के चयन पर ‘दलित विरोधी’ होने का आरोप लगाना ही गलत है। इनमें दलित अधिकारों के समर्थक और उनके लिए लड़ने वाले लोग शामिल हैं। दूसरी ओर हमारे ‘माननीय’ विद्वान सांसदों का कहना है कि कार्टून प्रकशन के जिम्मेदार लोगों को पदमुक्त किया जाए। उन लोगों को यह कार्टून समझने और अपने ढंग से उसकी व्याख्या करने में ही कई साल लग गए। इसके आगे कहने को कुछ बचता है क्या?

    हमारे यहां अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को लेकर विवाद-बहसें चलती रहती हैं। समर्थ, सम्पन्न और सत्ताधारी लोग लगभग हर चीज को अपने पक्ष में और अपने ढंग से रखना-चलाना चाहते हैं। ऊपर से विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र होने का ढोंग भी ओढ़े रखना चाहते हैं। सहिष्णुता सिमटती जा रही है। स्वस्थ दृष्टिकोण मैला होता जा रहा है। हर चीज अपनी पसन्द की होनी चाहिए। हर काम अपने पक्ष में होना चाहिए। हर फ़ैसला अपने पाले में होना चाहिए। अपनी पसन्द से उलट जरा कुछ इधर-उधर हुआ नहीं कि भड़क गये। इसके अलावा अपनी दुकानदारी चलाये रखने के लिए भी भाई लोगों के उर्वर मस्तिष्क में नाना प्रकार के विचार आते रहते हैं। कई विचारों पर अमल करना खतरनाक भी हो सकता हैं। पर इससे उन्हें क्या, भुगतेंगे तो और लोग ही!

    उत्तर प्रदेश में लोगों के गाढ़े पसीने की कमाई के करोड़ों रुपयों को एक ‘मूर्ति सनक’ के चलते बरबाद कर देने पर किसी की भावनाएं आहत नहीं हुईं। हमारे माननीय अपनी सुख-सुविधाओं-निवास नवीनीकरण पर मोटी राशि बरबाद कर देते हैं तब कोई चूं नहीं करता। विश्व के तमाम देशों से इलाज कराने लोग भारत आ रहे हैं और हमारे माननीय और महारानी छींक आते ही विदेश उड़ जाते हैं। स्विस बैकों में जमा धन और भ्रष्टाचार के मामले में जमुहाई आने लगती है। कितने लोग घपले-घोटाले करके अपने आसनों पर कुटिल मुस्कान के साथ विराजमान हैं। जिनकी बीड़ी खरीदने की औकात नहीं थी वे अब अरबों के मालिक हैं, रोजाना के शाही खर्च तो किसी गिनती में ही नहीं आते। देशभर में उपजाऊ और गैर उपजाऊ जमीनें खरीदकर या कब्जाकर किसने रखी हुई हैं। वगैरह। बाबू-इंसपैक्टर जैसी छोटी मछलियों के घर छापे में ही करोड़ों मिल रहे हैं फ़िर माहिर और सक्षम मगरमच्छों की बात ही कुछ और है। ऐसी तमाम बातें है जिनसे बेचारी भावनाएं आहत होने से प्राय: बच निकलती हैं। सार की बात यह है कि विषयान्तर होते हुए भी मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं कि करने को तमाम काम हैं, उन पर ध्यान केन्द्रित करने में मन लगाओ भाई!

    इस कार्टून मुद्दे पर अभी तक किसी बड़े नेता ने किसी को समझाने का या वास्तविकता को सामने रखने का गम्भीर प्रयास नहीं किया। सभी छोटे-बड़े मगन हैं- जो हो रहा है होने दो। कार्टून दलित विरोधी है। बिल्कुल है। इससे अम्बेडकर और दलितों का अपमान होता है। होता है। कार्टून हटाना है, हटा देंगे। हमको डराओ तो, हम डर जाएंगे! वाह!! कितनी बहादुरी है सबसे बड़े लोकतन्त्र में जहां हर तरफ़ अभिव्यक्ति की पूरी स्वतन्त्रता है। कार्टून पसन्द नहीं, रोक लगा दो। वेबसाइट पसन्द नहीं। बन्द कर दो। कोई अप्रिय बात कहे- मुंह तोड़ दो! कभी अपने भीतर झांकने की हिम्मत दिखाई क्या! अरे विरोध करना है तो अपने उन साथियों का करो आपके बगल में बैठने लायक नहीं हैं। चुनाव के समय अनुपयुक्त और अयोग्य लोगों को टिकट देने का विरोध करो।

    साहित्य की तरह कार्टून भी समाज का दर्पण है। उससे डरना क्या, दर्पण तो वही दिखाएगा जो उसके सामने है! अच्छ यही है भद्रजनो, करने वाले काम कीजिए, वह मत कीजिए जो आपकी और इस पवित्र इमारत के सम्मान के अनुकूल नहीं। करना ही है तो इस देश का नाम सिर्फ़ भारत कर दो जो अभी तक ‘इण्डिया’ का अनुवाद बना हुआ है। गुलाम रहे देशों में उच्चायोग की जगह अपने देश का दूतावास बनाओ। इस देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी का सभी जगह सम्मान हो, ऐसी व्यवस्था कर दो। देश और देशवासियों के हित में अनेक काम किये जा सकते हैं, उन्हें करने में अपनी ऊर्जा लगाइए। कार्टून और कार्टूनिस्टों के पीछे पड़ने से क्या हासिल होगा- कुछ और नये (अप्रिय) कार्टून!
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