बॉलीवुड के आलराउंडर्स: स्वानंद किरकिरे

Posted on
  • Saturday, August 6, 2011

  • इन दिनों हिंदी सिनेमा में ऐसे कई नाम उभर कर सामने आ रहे हैं, जो एक साथ कई विधाओं में माहिर हैं.एक ही व्यक्ति बेहतरीनगीतों के बोल सजाने में माहिर है तोवह उतना ही अच्छा वक्ता भी है. गौर करें तो फिल्मों की क्रेडिट लिस्ट में इन दिनों एक हीव्यक्ति का नाम कई श्रेणियों में आता है.

    Anupriya Verma
    Cine Journalist
    http://anukhyaan.blogspot.com/

    वे फिल्मों की कहानियां भी लिखते हैं. और गीत भी. वे फिल्में बनाते भी है और अभिनय भी करते हैं. वे एंकर भी हैं. कलाकार भी. लेकिन इसके बावजूद वे खुद को तीस मार खां नहीं समझते.


    इन दिनों हिंदी सिनेमा में ऐसे कई नाम उभर कर सामने आ रहे हैं, जो एक साथ कई विधाओं में माहिर हैं. एक ही व्यक्ति बेहतरीन गीतों के बोल सजाने में माहिर है तो वह उतना ही अच्छा वक्ता भी है. गौर करें तो फिल्मों की क्रेडिट लिस्ट में इन दिनों एक ही व्यक्ति का नाम कई श्रेणियों में आता है. वजह है इन कलाकारों का काम के प्रति पागलपन. उनका जुनून. हिंदी सिनेमा भी ऐसे महारथियों को हर क्षेत्र में एक साथ अपना हुनर दिखाने का पूरा मौका दे रही है. और इस कड़ी में आज हम बात करते हैं स्वानंद किरकिरे की...

    स्वानंद किरकिरे

    (गीतकार, नाटकार, अभिनेता, गायक, निदर्ेशक, लेखक, संगीतकार)



    इंदौर जैसे छोटे शहर से मुंबई ेमें आकर इन्होंने अपनी पहचान बनायी. शुरुआती दौर में कई परेशानियों का सामना किया. शुरुआत में सुधीर मिश्रा का साथ मिला. फिल्म हजारों ख्वाहिश ऐसी के लिए गीत लिखा. फिर कई टेलीविजन शोज के लिए लेखन किया. अभिनेता के रूप में हजारों ख्वाहिशों ऐसी में ग्रामीण के किरदार में नजर आये, एकलव्य में हवलदार बाबू के रूप में, चमेली में सर्च पार्टी मेंबर का किरदार निभाया है. लगातार कई नाटकों का मंचन. बतौर संगीतकार इन्होंने स्ट्राइकर में काम किया. गायक के रूप में अजब तेरी करनी मौला, ऑल इज वेल, शेहर, उतरन का टाइटिल गीत, बावंरा मन देखने चला एक सपना, ऐ सजनी रे सजनी, पल्कें झुखाओं ना, जानू ना, खोया खोया चांद जैसी गीत में अपनी आवाज दी. बतौर गीतकार स्ट्राइकर, 3 इडियट्स, जय संतोषी मां, लगे रहे मुन्नाभाई, शेहर, कल, लागा चुनरी में दाग, एकलव्य, पा, लफंगे परिंदे, परिणिता जैसी फिल्मों के गीत लिखे. संवाद लेखक के रूप में उन्होंने चमेली, एकलव्य व शिवाजी जैसी फिल्मों का लेखन किया. असोसियेट निदर्ेशक पे के रूप में हजारों ख्वाहिशें ऐसी, चमेली व कलकाता मेल जैसी फिल्मों का निदर्ेशन.


    बकौल स्वानंद ः शायद यह मेरे मन के बांवरे होने का ही नतीजा है. मन में हमेशा कोई न कोई नयी बात आती रहती है. अपने चारों ओर कुछ न कुछ खोजने की कोशिश करता हूं. शायद यही वजह है कि वे इन रूपों में नजर आती हैं. शुरुआती दौर से ही नाटक से लगाव रहा. नाटक से जुड़ाव होने की वजह से कई नाटकों के संवाद लिखने का मौका मिला. कीड़ा लगा रहा. मुंबई आया. लिखने लगा. लोगों को पसंद आया और काम मिलता गया. जो सोचता हूं. महसूस करता हूं. लिख देता हूं. शब्द मेरे प्रिय दोस्त बन गये हैं. बस चाहता हूं कि इसी तरह रचनाएं करूं और लोगों को वे सारी रचनाएं पसंद आये. मन बांवरा है. इसलिए शायद बांवरा गीत पसंदीदा रचनाओं में से एक है.

    Next previous
     
    Copyright (c) 2011दखलंदाज़ी
    दखलंदाज़ी जारी रहे..!