ठीक उसी वकत

Posted on
  • Saturday, April 16, 2011
  • (अनु के लिए जो आज भी मुसकुराती होगी)

    ठीक उसी वकत
    देखना चाहता हूं तुमहें ठीक उसी वकत
    न आगे न पीछे ठीक उसी वकत
    जब तुम होती हो न अपने पास न खुद से दूर
    छिपकर देखना चाहता हूं तुमहें ठीक उसी वकत

    उंगलियों से निशानी नापते
    जब तुम घुमाती हो अपनी गले की चेन
    चुपके चुपके जब पढ़ रही होती हो
    अपने हाथ की लकीर
    सुबह सुबह खिड़की खोलते ही जब ओढ़ लेती हो सूरज
    देखना चाहता हूं तुमहें ठीक उसी वकत

    कुछ बड़ी छोटी बूंदे जब
    अचानक तुमहारी आंखों से टपक जाते हैं
    डर जाती हो जब अपनी ही परछाई से अचानक
    गिर पड़ता है चेहरे पर तुमहारे कोई बाल
    काजल लगाते वकत अचानक
    देखना चाहता हूं तुमहें ठीक उसी वकत

    और कभी वैसा हुआ तो
    जैसे अलमारी खोली हो तुमने
    और अचानक से कोई पुराना खिलौना तुम पर आ गिरे
    उफ नाराज़ हो रही होती हो या बस मुसकुरा देती हो
    देखना चाहता हूं ठीक उसी वकत

    बिसतर पर लेटी तुम
    जब पढ़ रही होती हो पनने
    और खो जाती हो रूपा के किरदार में
    और अचानक से कालबेल की आवाज़ से
    किस कदर सहम जाती हो तुम
    देखना चाहता हूं तुमहें ठीक उसी वकत

    गुनगुनाती हुई जब तुम काट रही होती हो सबिजयां
    और अचानक से गुम हो जाती होगी बिजली
    लुढकने लगते होंगे जब आलू पयाज किचन में
    किस कदर बेबस हो जाती होगी तुम
    देखना चाहता हूं तुमहें ठीक उसी वकत

    बालकनी के सामने हिलती टहनी को
    भूत समझ कर
    आहिसता से जब तुम बंद करती होगी खिड़की
    देखना चाहता हूं ठीक उसी वकत

    उस तरह नहीं जैसे तुमहें सब देखते हैं
    उस तरह भी नहीं जैसे तुम देखती हो
    कोई नहीं देख रहा हो तुमहें
    देखना चाहता हूं तुमहें ठीक उसी वकत


    मेरा परिचय (जैसा कवि ने अपने परिचय में लिखा है)

    जिंदगी यूं तो ठीक ठाक थी मगर पढ़ने लिखने ने सारा मामला चौपट कर रखा है। यायावरी जिंदगी है देखें कहां तक चलते हैं

    नाम:- दीपांकर
    पता:- बोकारो झारखंड फिलहाल मुंबई में
    धंधा:- लिखने का

    http://fursatganj.wordpress.com/

    Next previous
     
    Copyright (c) 2011दखलंदाज़ी
    दखलंदाज़ी जारी रहे..!