टुनिशिया, मिस्र और यमन, अल्जीरिया

Posted on
  • Saturday, February 12, 2011


  • कल मिस्र में मुबारक के गद्दी छोड़ देने के बाद और पडोसी अफ्रीकी देशों में अचानक आयी क्रान्तियों के बाद देश दुनिया में लगातार यह कयास लग रहे हैं कि अफ्रीका में एक बड़ा बदलाव आयेगा. हाल ही में जिन बदलावों की बात की जा रही है वे हैं यमन और अल्जीरिया. जैसे ही मिस्र में राष्ट्रपति होस्नी मुबारक नें गद्दी छोड़ने का ऐलान किया पड़ोसी देश अल्जीरिया में लोग सड़कों पर उतरने लगे. लगता है मिस्र में मुबारक के तख्तापलट के बाद लोकतंत्र की मांग का वायरल पूरे अफ्रीका में तेजी से फैलेगा.
    यमन की राजधानी सना में कुछ दिनों पहले बुधवार के दिन जिस तरह विपक्षी पार्टियों ने विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया था और हड़बड़ी में प्रेसीडेन्ट अली अब्दुल्ला सालेह ने 2013 में बिना किसी उत्तराधिकार के गद्दी छोड़ने का ऐलान कर दिया था उससे देश दुनिया को यह लगने लगा कि मिस्र के बाद अब यमन ही स्वतंत्रता पाने वाला अगला देश होगा. मगर अगर अफ्रीका के इतिहास पर गौर करें तो यह साफ समझ आ जायेगा कि यमन की मुसीबतें कम नहीं हैं. यमन अफ्रीका के सबसे गरीब देशों में से एक है और प्रेसीडेन्ट अली अब्दुल्ला की जड़ें वहां काफी मजबूत बताई जातीं हैं. वैसे इसका एक उदाहरण बुधवार के बाद हुये प्रदर्शन में भी मिला जब 40 हजार की भीड़ सना यूनिवर्सिटी पर एकत्र हुयी मगर वहां न तो कोई गर्मागर्मी हुयी और न कोई बड़ी मांग. फिलहाल अल्जीरिया के हालात भी कुछ ऐसे ही हैं. लोकतंत्र की मांग वहां भी रहरह कर उठती रही है. मगर हरबार राष्ट्रपति अब्दल अज़ीज़ बूतेफ्लिका की तानाशही अब तक के किसी भी प्रदर्शन पर भारी ही पड़ी है. मिस्र के घटनाक्रम से उत्साहित आज़ादी के समर्थकों नें जब एक विशाल रैली करने का फैसला किया तो राजधानी अल्जीयर्स में लोकतंत्र के समर्थन में होने वाली इस रैली पर प्रतिबंध लगा दिया गया. अल्जीयर्स में भारी मात्रा में पुलिस बल की तैनाती के कारण कोई भी बड़ा विरोध देखने को नहीं मिला और मिस्र की गर्म हवा का सीधा असर अल्जीरिया और यमन पर नहीं नहीं पड़ पाया. आजादी की इस आवाज को दबा दिया गया.
    इतिहास गवाह है कि आन्दोलनों को शुरूआत में हमेशा ही दबाया गया है. इससे पहले भी टुनिशिया और मिस्र जैसे आंदोलनों की शुरुआत को रोकने के लिए जो कुछ किया गया वह किसी से छिपा नहीं है. दुनिया के अधिकतर देशों में परिवर्तन बड़ी मुश्किलों के बाद ही आया है. अफ्रीकी परिस्थितियों को देखते हुये सम्भव है कि क्रान्ति आने में कुछ देर लग जाय मगर यह तो तय है कि लोकतंत्र का बीज अफ्रीका में अंकुरित हो चुका है .
    Next previous
     
    Copyright (c) 2011दखलंदाज़ी
    दखलंदाज़ी जारी रहे..!