पिछले कुछ समय से जाने अनजाने कारणों से सचिन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ता जा रहा है. हो सकता है कि सचिन के लिए विश्व कप जीतने का आह्वाहन युवा खिलाडियों के लिए काफी प्रेरणादायक साबित हो पर ये भी स्पष्ट है कि इससे मास्टर ब्लास्टर पर तो दबाव बढ़ा ही है. खैर यहाँ तक तो गनीमत थी पर ऐन वर्ल्ड कप के पहले इसमें कुछ और बातें भी शामिल हो गयी हैं. पहले स्टीव वा का बयान आया कि क्या सचिन देश से बड़े हैं और फिर अज़हर के एक इंटरव्यू से कुछ बातें बढ़ाचढ़ा कर पेश की गयीं. मुझे नहीं लगता कि ये सही समय है स्टीव वा को जवाब देने का या ये पता लगाने का कि क्या सचिन में अच्छा कप्तान बनने की काबिलियत है या नहीं. निश्चित रूप से हम सब मानते हैं कि भारतीय टीम का मौजूदा फार्म और विश्वकप का एशियाई पिचों पर होना हमारे लिए एक बहुत शुभ सन्देश है और इन परिस्थितियों को अगर सचिन की करिश्माई बल्लेबाजी का साथ मिल जाये तो यकीनन हमारा विश्व विजेता बनने का सपना एक बार फिर पूरा हो सकता है. ऐसे में इस तरह के विवादों को तूल देकर हम अपनी स्वर्णिम संभावनाओं को खतरे में डाल सकते हैं.
जहा तक स्टीव के बयान की बात है, कंगारू हमेशा से ऐसी हरकतों के लिए कुख्यात रहे हैं. उन्हें मालूम है कि अपने किस टैलेंट को कैसे इस्तेमाल करना है. वहीं अज़हर के बयान से शुरू हुआ विवाद पूरी तरह से मीडिया की देन मालूम होता है. सचिन कैसे कप्तान थे ये जानने में अब शायद ही किसी को दिलचस्पी होगी और वो कैसे बल्लेबाज हैं इस बारे में शायद ही किसी बहस की ज़रुरत होगी. ऐसे में इन विवादों को भूल कर अगर सकारात्मक स्थितियां तैयार की जायें तो सचिन ही नहीं पूरी भारतीय टीम का काम कुछ आसान हो जायेगा.