मिस्र की क्रांति पर

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  • Wednesday, February 9, 2011
  • क्रांती की शुरुआत  - राजेंद्र तेला

    जवान मौतों से
    अबला व्यथित हुयी 
    एक टीस मन में उठी 
    दिल की आवाज़ जुबाँ से
    निकली 
    तहरीर चौक में
    इकट्ठा होने की गुजारिश
    करी 
    "निरंतर"पीड़ित जनता ने
    गौर से सुनी
    शासक से लड़ने की
    हुंकार भरी 
    शांती से क्रांती की
    शुरुआत हुयी 
    आग पूरे मिस्र में फैली 
    कोशिश आवाज़ दबाने
    की हुयी 
    लाठी गोली भी विचलित
    ना कर सकी
    हार शासक ने मानी 
    परिवर्तन की आंधी 
    दुनिया ने देखी 
    खुशबू सारे जगत
    में फैली
    एक नारी ने ज़ुल्म से
    मुक्ती की नीव रखी
    अपने विश्वाश पर
    खरी उतरी

    राजेंद्र जी ने दखलंदाजी के नए रंग रूप पर भी एक कविता भेजी है, जो हम यहाँ आपके साथ बाँट रहे हैं.....

    "दखलंदाजी का अंदाज़ बदला 
    रंग रूप बदला 
    आँखों को अच्छा  लगा 
    मन प्रफुल्लित हुआ
     नव वर्ष में कुछ नया देखा 
    दिल से सलाम निकला 
    सफ़र का एक पड़ाव 
    पूरा हुआ "
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    दखलंदाज़ी जारी रहे..!