ऐ...तू, तू है....कोई चीज़ नहीं है.....

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  • Thursday, January 20, 2011
  • ऐ...तू, तू है....कोई चीज़ नहीं है..... 
    तेरे भीतर भी कोई आवाज़ है....
    तेरे अन्दर भी कोई साज है....
    तू सभी चीज़ों का आगाज है....
    तू, तू है....कोई और नहीं....एक जीवंत राज है   
    तू, तू है....कोई चीज़ नहीं है....
    ऐ...तू कभी तेरे को पहचान ना कभी....
    कि तेरे भीतर भी कोई आदमी आग है....
    बस....पता नहीं क्यों इसपर....
    जन्मों-जन्मों से बिछी हुई राख है...
    ऐ पागल...तू,तू है....तेरे भीतर भी कोई है..
    कोई व्यक्तित्व...कोई निजता....कोई आत्मा....
    तू नहीं है किसी के विलास का एक साधन मात्र 
    मगर,अगर तू ऐसी ही रही...तो समझ ले कि 
    ऐसा ही रहेगा यह आदम भी जैसे-का-तैसा 
    एक अनंत यौनिकता...एक बर्बर भूख...
    अगर तू इसकी मान ले तो बहुत अच्छा....

    अगर नहीं तो ताकत के सहारे आक्रमण कर देगा 
    और कहेगा कि नहीं हो सकता आज के युग में ऐसा...
    नहीं यह सिर्फ एक तरफ़ा सोच नहीं है मेरी....
    अपने चारों तरफ देख रहा हूँ यही एक भूख....
    अनंत काल से अनन्त रूप से भूखी भूख....
    मगर ऐ पागल....तेरा काम सिर्फ यही तो नहीं है ना...?
    किसी के साथ कुछ रात गुजार देना....
    किसी के देखने के लिए अपनी मांसलता संवार लेना...
    क्या महज एक जिस्म है तू....?
    जैसा कि तूने बना दिया है खुद को....!!
    अगर ऐसा कुछ ही खुद को मानती है तू....
    तब तो मुझे तुझसे कुछ नहीं कहना....मगर,
    अगर सच में तू एक निजता है...एक व्यक्तित्व..एक आत्मा..
    तो इसे पहचान ना री पगली....
    निरी पशु बन कर क्या जीए जा रही है तू....
    थोड़े से क्षेत्रों में कुछेक नौकरियां करके भी....

    तू बनाए तो हुए है खुद को विलास का एक हूनर....
    कहीं मजबूरी....तो कहीं खुद आगे बढकर....!!
    जिन्दगी क्या है....कभी सोचा भी है तूने....?
    तो भला क्या सिखा सकती है तू अपने बच्चों को...!!
    और जिन बच्चों ने तुझसे कुछ नहीं जाना....
    क्योंकि तूने खुद ने ही नहीं जाना....
    तो कैसा बनाएंगे....जिन्दगी को वे....

    और कैसी बनेगी बिना जाने हुए बच्चों से यह धरती....
    (जैसी कि बनती जा रही है,कैरियर के लिए लड़ते 
    और हवस को पूरा करने में खुद को झोंकते ये युवा...)
    अरी ओ पगली....तू तो है जन्म देने वाली....
    किसी को जन्म देने से पहले......
    कम-से-कम अब तो खुद को पहचान....
    ज़रा यह तो सोच कि कितनी विराट है तू....!!
    तेरे भीतर पलता है एक अनंत व्याकुल जीवन....
    इस जीवन की व्याकुलता को सही दिशा में साध....
    तू है इस धरती पर एक गहन-गह्वर योगिनी....

    तू मत बन पगली महज एक बावली भोगिनी....
    कि तू....सच में तू है अगर....
    तो आ....अपनी प्यास को पहचान....
    अपने-आप से कोई नयी बात कर.....
    अपने बच्चों को कोई नयी प्यास दे....
    अपनी तलाश कर....अपना गुमां पहचान
    देख ना री....यह धरती कुम्भलाई जा रही है....
    तू अनन्त की इस भीड़ में मत खो जा री....
    तेरे आने वाले बच्चे तुझसे बड़ी आस में है...


    यह धरती एक नयी नस्ल की तलाश में है....!!
    अब इस भीड़ में तू अपने लिए एक अनंत वीराना बून....
    फिर देख दुनिया तेरे भीतर यूँ सिमट जाएगी....
    जैसे कि इक भक्त में.....समा जाता है....परमात्मा....!! 
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