इसलिए थोडा बहुत सोच विचार भी चल रहा था मेरे मन में
भीडभरी गड्ढेदार सड़कों पर निगाह रखने के अलावा
मै सोच रहा था कि कोई भी ज़ख्म हो
कितने दिन बीते अभी की तो बात है
जब मै पगलाया सा घूमता था उसकी गलियों में
जैसे मेरा हर रास्ता उसके मोहल्ले से होकर गुज़रता था
हर वक़्त ढूढ़ा करता था ज़वाब उन सवालों के
जो उस टूटे हुए सपने ने मुझमे जगा दिए थे
हर वक़्त तोला करता था आपने ज़ज्बातों को हालातों के साथ
झगड़ने लगता था बीच सकों पर आपने ही दोस्तों से
और बन जाता था सहानुभूति मिश्रित घृणा का विषय
मैंने याद किये वो दिन
जब सिसकियों की आवाज़ दबाकर रोया करता था हर रात
और भिगोया करता था आखों को चेहरे को और तकिये को
जब हर वक़्त उसका चेहरा रहता था मेरी आखों के आगे
जैसे उसका चेहरा मेरे रेटिना पर छप गया हो
मुझसे पूछो कि नींद कितनी खफा थी मुझसे उन दिनों
और एक आज का दिन है
पूरे दिन में उसका एक बार भी ख्याल तक नहीं आता
पूरी नीद सोता हूँ रात में और कभी कभी दोपहर में भी
आधे एक घंटे की झपकी ले लेता हूँ
कम से कम छुट्टियों के दिनों में
और अब मुझे पहले की तरह सारी दुनिया से शिकायत नहीं रहती
ना तो ज़ल्दी किसी से दोस्ती होती है और ना ही झगडा
यहाँ तक कि मोबाईल पर किसी अननोन नंबर से आया
कोई भी मिस्काल या मैसेज मुझे परेशान नहीं करता
और तो और अब मै बालीवुड की
कोई भी रोमांटिक मूवी देख सकता हूँ पूरे ढाई तीन घंटे की
वो भी बिना रोये गए बिना आंसू बहाए
मै ये सब सोच ही रहा था
कि तभी थोड़ी दूर पर
एक रिक्शा सामने से आता हुआ दिखाई पडा
और दिखी उस पर सवार एक खूबसूरत लडकी
....क्रीम कलर का सूट, सांवली रंगत, गोल चेहरा
बड़ी बड़ी आखें और उन पर चश्मा
.....अरे........ये तो नेहा है....!!
जैसे ही ये नाम जेहन में आया, एक ज़ोरदार आवाज़ हुई
...........धड़ाक..........................!!!
जैसे कोई बम फटा हो....,
लेकिन ये आवाज़ कहीं बाहर नहीं मेरे सीने में हुई थी
एक अजाब सी सिहरन दौड़ गयी थी मेरे शरीर में
नेहा ने भी मेरी ओर देखा...एक क्षण के लिए नज़रें भी मिलीं
इतने में वो रिक्शा मेरी बाइक कि बराबर आकार पीछे छूट गया
और मै आगे चला जा रहा था....
........एक अजीब से भावावेश में कांपता हुआ.....!!!
- असीम