क्यों मानू मै ,
नियति रुदन को ,
मेरे भी कुछ अरमा- सपने ;
नहीं चाहिए
भ्रमित सहारे
सब पहचाने कितने - अपने;
मुझसे प्रश्न
करे हर कोई
मै भी चाहू उत्तर अपने ;
तुम कहते हो
रक्षा खातिर मेरी
खीच रहे सीमाए ;
कैसे मानू
सत्य यही है ,
इसीलिए लक्ष्मण-रेखाए ;
मुझे आश्रय दिया सभी ने
पर क्यों न मेरा घर कोई ;
यह न मेरा ,
वह न मेरा ,
यहाँ ' पराई'
वहा 'दूसरे घर' से आई ;
एक रेत कि नदी बनी मै ;
क्यों पग-पग पर
ठोकर खाऊ ,
युगों -युगों से मौन रही मै
क्यों अब भी मै चुप रह जाऊ ;