क्यों मानू मै .......

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  • Saturday, December 11, 2010
  • क्यों मानू मै ,
    नियति रुदन को ,
    मेरे भी कुछ अरमा- सपने ;

    नहीं चाहिए 
    भ्रमित सहारे 
    सब पहचाने कितने - अपने;

    मुझसे प्रश्न 
    करे हर कोई 
    मै भी चाहू उत्तर अपने ;

    तुम कहते हो 
    रक्षा खातिर मेरी 
    खीच रहे सीमाए ;

    कैसे  मानू 
    सत्य यही है ,
    इसीलिए लक्ष्मण-रेखाए ;

    मुझे आश्रय दिया सभी ने  
    पर क्यों न मेरा घर कोई ;
    यह न मेरा ,
    वह न मेरा ,

    यहाँ ' पराई'
    वहा  'दूसरे घर' से आई ;

    एक रेत कि नदी बनी मै ;
    क्यों पग-पग पर 
    ठोकर खाऊ ,
    युगों -युगों से मौन रही मै 

    क्यों अब भी मै चुप रह जाऊ ;

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