भूतनाथ जी

Posted on
  • Monday, September 6, 2010










  • भूतनाथ जी
    आपके अनुभव और अंदाज दोनों का मै हमेशा से सम्मान करता आया हूँ और इस आर्टिकल में लिखी गयी कुछ बातों का भी मै पूर्ण सम्मान करता हूँ. उदहारण के लिए 'लफ्ज' या किसी भी ऐसी पत्रिका के संपादकों की कविता, गजल या साहित्य के प्रति नेगेटिव अप्रोच, या उनका ये मानना की चीजें हूबहू वैसी ही होती है जैसी वो सोंचते है और लगातार उनके द्वारा की जाने वाली हिटलरशाही.......पर भूतनाथ जी वो दूसरी बाते हैं. आप लिस आर्तिक्ले की बात कर रहे है मैंने वो आर्टिकल नहीं पढ़ा ......... खैर मै आर्टिकल की ज्यादा बात भी नहीं करूँगा पर अरुंधती राय की ये बातें मुझे परेशान सी करती दिखाती है
    "....लोकतंत्र तो मुखौटा है,वास्तव में भारत एक ’अपर कास्ट हिन्दू-स्टेट है,चाहे कोई भी दल सता में हो, इसने मुसलमानों,ईसाइयों,सिखों, कम्युनिस्टों,दलितों, आदिवासियों और गरीबों के विरूद्द युद्ध छेड रखा है,जो उसके फ़ेंके गये टुकडों को स्वीकार करने के बजाय उस पर प्रश्न उठाते हैं..." उसके बाद के अगले पैरे में शंकर जी खुद कहते हैं कि यही पूरे लेख की केन्द्रीय प्रस्थापना है,जिसे जमाने के लिए अरुंधती ने हर तरह के आरोप,झूठ,अर्द्धसत्य घोषनाओं और भावूक लफ़्फ़ाजियों का उपयोग किया है..............."

    क्या सच में समस्या इतनी जटिल है ?
    और क्या वाकई हम बेहिसाब और बेपरवाह रवैये से कुछ भी लिख कर समाज में फैली समय को और नहीं बढ़ा रहे है.
    प्रेस की आजादी ठीक है और हम जैसे पत्रकारों के लिए सुनहरे अवसर भी प्रदान करती है कि हम खुल के लिखें और खुल के बोले पर जहर घोलना मुझे ठीक नहीं लगता
    अभी अमेरिका की तरह इंडिया में वो समय नहीं आया है जब कोर्ट में अवमानना के हजारों केस दर्ज होंगे और इस तरह की पत्रकारिता की पब्लिसर बड़ी बड़ी कीमतें चुकायेंगे......... आपको कई पत्रकार जेल की हवा भी खाते दिखाई देंगे
    पर ऐसा होगा कब, मुझे नहीं पता पर एक बात मुझे पता है की आप मेरी बातों से तो कतई सहमत नहीं होंगे
    Next previous
     
    Copyright (c) 2011दखलंदाज़ी
    दखलंदाज़ी जारी रहे..!