कुछ तो तय है और कुछ आदत से मजबूर है
यहाँ गलतिया किसकी बताए सब अपने में चूर है
हम भी है उन्ही में शामिल यारो
भटके बेबस बहके खुद से दूर है
अंदाजा भी नहीं रहा लोगो का
दिखते कुछ, और होते कुछ और है
परवाह नहीं किसी के दिल की यहाँ
बस सब तोड़ने में मगरूर है
कौन बताये उनको ये हकीकत कडवी
वो तो डूबे है नशे में चूर है
छोटा बड़ा अपना पराया और ये धोखा
'मनी' ये सब क्या है और ये किसका गुरूर है
................मनीष शुक्ल