मेरी बात आपके साथ...

Posted on
  • Monday, August 30, 2010
  • दोस्तों ........मुझे कभी कभी लगता है मै इस समाज के व्यसायिक करण को पूरी तरह नही अपना सकता ....मै इस भीड़ में तो गया हूँ पर जिसे देखो वो धक्का मार कर चला जाता है ......मुझे इस रास्ते पर सीधा चलने के लिए अपने अन्दर बहुत कुछ तोडना होगा ........क्योंकि यहाँ बिना रीड़ की हड्डी का इंसान चाहिए .....क्या मेरी कहीं जरूरत नही ?....मुझे भी झूठ,मक्कारी,फरेब,धोखा और चापलूसी सीखना होगा ...अगर नही, तो ज्यादा दिनों तक नही दौड़ पाउँगा ...आज हर कोई अपने को बढ़ाने में कम दुसरे को घटाने में ज्यादा मेहनत करता है ...ये कैसे आगेबढ़ गया ,ये क्यूँ तरक्की कर रहा है ,इसको कैसे नीचा दिखाऊ .....इस तरह के वायरस दिमागी क्यम्प्यूटर में आकरआदमी को हैंग कर देते हैं .......और प्रगति रुपी माउस निष्क्रीय कर देता है .....मेरी कम उम्र श्यादकुछ मेरेआदरणीय विष्शिठ लोगों के लिए सफलता पाने का पैमाना हो सकती है ..........जिनके भाव भंगिमा को मै आजतक नही पढ़ पाया....की वो मेरे लिए किस तरह के हैं ..........उनके भाव मेरे लिए भले बदल गये हो पर मेरे भाव बढ़ने के बाद भी उनके लिए आज भी मेरे मन में बिना आभाव के वही भाव हैं।

    अनिरुद्ध मदेशिया
    Next previous
     
    Copyright (c) 2011दखलंदाज़ी
    दखलंदाज़ी जारी रहे..!