प्रकृति से आध्यात्म की ओर

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  • Thursday, August 5, 2010
  • शिवरात्रि वह पर्व है जब प्रकृति व्यक्ति को उसके आध्यात्मिक शिखर की ओर ढकेलती है। इसका उपयोग करने के लिए हमने एक खास त्योहार स्थापित किया है जो रात-भर मनाया जाता है। हरेक चन्द्रमास का चौदहवाँ दिन या अमावस्या से एक दिन पूर्व को शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक पंचांग वर्ष में होने वाली सभी बारह शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि जो फरवरी-मार्च के महीने में पड़ती है, सबसे अधिक महत्व वाली होती है। इस रात्रि में, इस ग्रह के उत्तरी गोलार्ध की दशा कुछ ऐसी होती है कि मानव शरीर में प्राकृतिक रूप से ऊर्जा का एक उर्ध्व उमाड़ होता है।

    यह एक ऐसा दिन होता है जब प्रकृति व्यक्ति को उसके आध्यात्मिक शिखर की ओर ढकेल रही होती है। इसी का उपयोग करने के लिए इस परंपरा में हमने एक खास त्योहार स्थापित कर रखा है जो पूरी रात मनाया जाता है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस त्योहार का एक बुनियादी तथ्य यह निश्चित करना होता है कि ऊर्जाओं का राह प्राकृतिक उर्ध्व उमाड़ अपना रास्ता पा सके - आप अपना मेरूदंड उर्ध्व करके रखें और जगे रहें।

    वे लोग जो पारिवारिक स्थितियों में रहते हैं वे महाशिव रात्रि को शिव की शादी की सालगिरह के रूप में मनाते हैं। सांसारिक महत्वकाँक्षा वाले लोग इसे उस दिन के रूप में मनाते हैं जिस दिन शिव ने अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी लेकिन तपस्वियों के लिए यह वह दिन है जब शिव कैलाश के साथ एक हो गए थे क्योंकि वे पर्वत की तरह हो गए थे। निश्चल और पूर्णतः शांत। योग परंपरा में, शिव की पूजा ईश्वर के रूप में नहीं की जाती है, बल्कि उन्हें आदि गुरु माना जाता है।

    वे प्रथम गुरु हैं जिनसे ज्ञान की उत्पत्ति हुई थी। कई हजार वर्षों तक ध्यान में रहने के पश्चात एक दिन वे पूर्णतः शांत हो गए, वह दिन महाशिव रात्रि का है। उनमें सभी तरह की गतियाँ रुक गईं और वे पूर्णतः निश्चल हो गए, इसलिए तपस्वी महाशिव रात्रि को निश्चलता के दिन के रूप में मनाते हैं।

    पौराणिक कथाओं के अलावा योग परंपरा में इस दिन और इस रात को बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका कारण वे संभावनाएँ हैं जो महाशिव रात्रि एवं आध्यात्मिक जिज्ञासु के समक्ष प्रस्तुत करती हैं। आधुनिक विज्ञान कई सारी अवस्थाओं से गुजरने के बाद आज एक ऐसे बिंदु पर पहुँचा है जहाँ वह आपको यह सिद्ध कर रहे हैं कि वह हर चीज जिसे आप जीवन के रूप में जानते हैं, वह हर चीज जिसे आप पदार्थ या अस्तित्व के रूप में जानते हैं, वह हर चीज जिसे आप ब्रह्मांड या तारामंडल के रूप में जानते हैं - वह बस एक ऊर्जा है जो स्वयं को लाखों-करोड़ों तरह से व्यक्त करती है।

    शिव का वर्णन हमेशा से त्रिअम्बका के रूप में किया जाता रहा है - वह जिसकी तीन आँखें हैं। तीसरी आँख वह आँख है जिससे दर्शन होता है। आपकी दो आँखें इंद्रियाँ हैं। ये मन कई तरह के मिथ्यादर्शन कराती हैं क्योंकि जो आप देखते हैं वह सत्य नहीं है। ये दो आँखें सत्य को नहीं देख पाती हैं, इसलिए एक तीसरी आँख, एक गहरी भेदन शक्ति वाली आँख को खोलना होगा।
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