जब मुंबई हमले के आरोपी अजमल कसाब का केस अब लगभग तय हो गया है और उसकी सजा के लिए ६ तारीख का दिन भी निर्धारित कर दिया गया है तो मीडिया में उसे लेकर तरह तरह कि अटकलें लगाई जा रही है. २४ घंटा न्यूज़ देने को बाध्य न्यूज़ चैंनल जो मानो इसी की तलाश में बैठे हो .....ब्लॉग से लेकर सोसल नेटवर्किंग वेबसाइट्स हर जगह हमारे पत्रकार बंधू जमकर लिख रहे है.......५ मिनट पहले ही मैंने एक जाने माने पत्रकार महोदय का ब्लॉग पढ़ा जिसमे उन्होने चिंता व्यक्त की कि कसाब को सजा देने में कई साल लग सकते हैं और कहा कि कसाब को सरेआम गेटवे ऑफ इंडिया पर मौत की सजा देनी चाहिए। फांसी नहीं बल्कि पत्थर मार-मारकर। यदि ऐसा हुआ (होगा नहीं) तो पत्थर मारने के लिए मुंबई से वे भी इंडिया गेट आयेंगे. अब जब हमारे मित्र इतना कष्ट करे को तैयार है तो मैंने सोचा कि क्यूँ ना मै उनके ब्लॉग पर एक कमेन्ट दे ही डालूं......उसी का कुछ विवरण आप दखलन्दाज मित्रों के साथ शेयर कर रहा हूँ
हमारे पत्रकार बंधुओं आजकल आप लिखते जबरजस्त है और इसके लिए मै आपकी तारीफ़ भी करता हूँ. मगर हर बात उतनी आसान नहीं जितनी कि हम आप लिख या बोल देते है. मै मानता हूँ कि जो कुछ भी आप कह रहे हैं वो भावनापरक है और करोडो लोगों की भावनाएं उससे जुडी हुई है पर ज़रा गौर कीजिये. प्रोसेस हमेशा ही शार्टकट से बेहतर होता है......याद कीजिये वो समय जब हम आप जैसे पत्रकार ही अपने लेखों में बार बार यह मांग कर रहे थे की कसाब पर केस मत चलाओ और जल्द से जल्द उसे फासी पर लटका दो . वकीलों ने उसका केस लड़ने से ही मना कर दिया था.
मुझे पता है यह सही है और कसाब ने जो किया है उसके बाद ये बाते बहुत बड़ी या अन्यायपूर्ण नहीं है पर ज़रा गौर कीजिये. यह सब कुछ एक कसाब पर आकर खत्म नहीं हो जाता है...यहाँ बात सिस्टम की है. हमारा संविधान कहता है की कोई भी इंसान तब तक दोषी नहीं है जब तक उसका गुनाह साबित नहीं हो जाता. एक और बात भी हमारे संविधान की ही है और वो है राईट टू फेयर ट्रायल. हमने वो सब किया जो हमारा सिस्टम कहता है और कुल मिला कर हमारा सिस्टम नहीं बदला......इसका मतलब यह है की हम बायस्ड नहीं है, हम कसाब को कोई इस्पेशल इम्पोर्टेंस नही देते ...हमारे लिए हमें हमारा सिस्टम सही रखना ज्यादा जरुरी है
पर आपकी बात भी सही है कि जब पचास फाइलें निबटेंगी तब कसाब का नंबर आयेगा. पर मै फिर कहूंगा की वो सही है क्यूंकि वो पचास भी गुनाहगार है , गलत तो यह है की आखिर ये नंबर पचास पहुचा कैसे? क्या राष्ट्रपती जी को इतना समय नहीं मिल पाया है या जरुरी राजनितिक छूट की वो ऐसे डिसिसन ले पाए जो देश के हित में हो और देश की जनता को सही समय पर न्याय दिलाएं.