एक ख़्वाब

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  • Saturday, February 20, 2010
  • आजतक ख़्वाब में हसीन
    ख्वाहिशें पिरोकर रखता था
    ज़िंदगी के गलियारों में कहीं
    उनकि खिलखिलाहट सुनता था
    आँख खुली और चेत हुआ

    काँटों
    के बिस्तर पे लेटा पाया

    रात के अंधियारों में मुझे
    चारों और से घेरा पाया
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    दखलंदाज़ी जारी रहे..!