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  • Thursday, February 4, 2010

  • दोस्तों कविता लिखने का सौख है मुझे या कह लीजिये कि आदत

    तो मजबूरन एक कविता लिख डाली है




    तुम मिली मुझे
    जब मै एकदम अकेला था,
    सैकड़ो कि भींड में सबसे अकेला,
    और मिली भी तब,
    जब उदासी मेरी पहचान बन गयी थी,
    यह वो समय था,
    जब मुझे यकीन हो चला था,
    कि मै मर गया हूँ
    कई तूफानों ने कलेजा झकझोर दिया था,
    हवा के एक झोके तक से डर लगाने लगा था मुझे,
    सांसों को सुनने तक कि हिम्मत नहीं बची थी मेरे पास

    वाह यह कितना सुखद है
    कि तुम मिली और जीने का एहसास हो गया,
    लगता है मानो हर अंग में तुम ही तुम समां गयी हो,
    और देखो अब तो तूफान भी गुजर गया है,
    फिर भी मै आराम से हूँ,
    और मजे कि बात यह है कि,
    धड़कने बढ़ सी गयी है मेरी,
    सांसो में एक रफ़्तार सी आ गयी है,
    मानो कोई मंजिल मिल गयी हो

    तुम मिली तो सच कहूँ
    मै जी उठा हूँ !
    वाकई कितना बड़ा आश्चर्य है,
    कि तुम मिली और मै जिन्दा हूँ
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    दखलंदाज़ी जारी रहे..!