जीवन एक अग्निपरीक्षा है जिसमें प्रतिक्षण जीव को खरा उतरना ही पड़ता है। सुख - दुख का गौर कौन और कैसे करें? यहां एक क्षण विश्राम करने को भी वक्त नहीं। इस कठिन परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए उसको अपने सपनों के भी बली चढ़ानी पड़ती है। अपने शुद्धता व्यक्त करने के लिए अग्नी में प्रवेश करनेवाली सीता मय्या ने क्या क्या सपने अपने दिल के अन्दर सुलाए होंगे? अग्नी में वे सब जलकर राख बने की नहीं? सपनों को केशभार से तुलना की हैं।
ये सब अग्नि परीक्षा नामक चित्र से मैं ने व्यक्त करना चाहा।

धन्यवाद,
बालकृष्ण मल्या