कुछ तुम चलो कुछ हम चलें, कुछ ज़िन्दगी पर छोड़ दें

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  • Sunday, January 17, 2010
  • कुछ तुम चलो कुछ हम चलें, कुछ ज़िन्दगी पर छोड़ दें

    कुछ मंजिलों पर छोड़ दें कुछ रास्तों पर छोड़ दें

    इन उलझनों में हर घडी घुलने से भी क्या फायदा

    कुछ मुश्किलों पर छोड़ दें कुछ हौसलों पर छोड़ दें



    मुमकिन है की ये रास्ता तेरी तरफ जाता न हो

    जो भी चला हो इस तरफ मंजिल को वो पता न

    पर ख्वाहिशों का ये सफ़र कैसे अधूरा छोड़ दें

    कुछ तुम चलो कुछ हम चलें कुछ ज़िन्दगी पर छोड़ दें



    शब्दों की दुनिया में भला ढूँढें कहाँ एहसास ये

    बस ढाई लफ़्ज़ों में भी तो बुझती नहीं है प्यास ये

    अब नाम रखने की रसम बाकि ज़हां पर छोड़ दें

    कुछ तुम चलो कुछ हम चलें कुछ ज़िन्दगी पर छोड़ दें



    अब क्या पता किस वास्ते हम तुम मिलें हो इस तरह

    क्या हो समय की सोच में हमको मिलाने की वज़ह

    फिर क्यूँ भला भरने से पहले ही ये गुल्लक फोड़ दें

    कुछ तुम चलो कुछ हम चलें कुछ ज़िन्दगी पर छोड़ दें

    कुछ मंजिलों पर छोड़ दें कुछ रास्तों पर छोड़ दें

    इन उलझनों में हर घडी घुलने से भी क्या फायदा

    कुछ मुश्किलों पर छोड़ दें कुछ हौसलों पर छोड़ दें
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